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छठ पूजा का महत्व और विधि

छठ एक प्राचीन हिंदू वैदिक त्यौहार है जिसे सभी बड़ी ही श्रद्धा और धूमधाम से मनाते है. छठ पर्व चार दिनों का होता है और इसका व्रत सभी व्रतों से कठिन होता है इसलिए इसे छठ महापर्व के नाम से भी जाना जाता है.
हिन्दी पंचाग के अनुसार, छठ पूजा का खरना कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को होता है. खरना को लोहंडा भी कहा जाता है. इसका छठ पूजा में विशेष महत्व होता है. खरना के दिन छठ पूजा के लिए विशेष प्रसाद बनाया जाता है. खरना के दिन भर व्रत रखा जाता है और रात प्रसाद स्वरुप खीर ग्रहण किया जाता है.
इस दिन घर में जो भी छठ का व्रत करने का संकल्‍प लेता है वह, स्‍नान करके साफ और नए वस्‍त्र धारण करता है. फिर व्रती शाकाहारी भोजन लेते हैं. आम तौर पर इस दिन कद्दू की सब्‍जी बनाई जाती है. 
क्या होता है खरना यह पर्व चार दिन तक मनाया जाता है. इस पर्व का दूसरा दिन खरना होता है. खरना का मतलब शुद्धिकरण होता है. जो व्यक्ति छठ का व्रत करता है उसे इस पर्व के पहले दिन यानी खरना वाले दिन उपवास रखना होता है. इस दिन केवल एक ही समय भोजन किया जाता है. यह शरीर से लेकर मन तक सभी को शुद्ध करने का प्रयास होता है. इसकी पूर्णता अगले दिन होती है.
खरना पर बनती है खीर (रसियाओं) खरना के दिन रसिया का विशेष प्रसाद बनाया जाता है. यह प्रसाद गुड़ से बनाया जाता है. इस प्रसाद को हमेशा मिट्टी के नए चूल्हे पर बनाया जाता है और इसमें आम की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है. खरना वाले दिन पूरियां और मिठाइयों का भी भोग लगाया जाता है. खरना यानि खीर को खाने का भी एक विशेष नियम होता है. प्रसाद कहते समय घर के सभी लीगो को शांत रहना चाहिए। किसी तरह की कोई भी आवाज व्रती के कानो में नहीं पड़नी चाहिए। अगर खीर खाते समय व्रती के कानो में आवाज चली जाये तो उसे उसी समय भोजन छोड़ देना चाहिए।
साफ सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए छठ महा पर्व में साफ सफाई का विशेष महत्व होता है. प्रसाद बनाने से लेकर प्रसाद बनाने की जगह तक को विशेष साफ रखा जाता है. गंदे हाथो से प्रसाद को छूना भी नहीं चाहिए और न ही बनाना चाहिए।
छठ पूजा की विधि हिंदू धर्म में यह पहला ऐसा त्‍योहार है जिसमें डूबते सूर्य की पूजा की जाती है. छठ के तीसरे दिन शाम यानी सांझ के अर्घ्‍य वाले दिन शाम के पूजन की तैयारियां की जाती हैं. इस दिन नदी, तालाब में खड़े होकर ढलते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. फिर पूजा के बाद अगली सुबह की पूजा की तैयारियां शुरू हो जाती हैं.
चौथे दिन सुबह के अर्घ्‍य के साथ छठ का समापन हो जाता है. सप्‍तमी को सुबह सूर्योदय के समय भी सूर्यास्त वाली उपासना की प्रक्रिया को दोहराया जाता है. विधिवत पूजा कर प्रसाद बांटा जाता है और इस तरह छठ पूजा संपन्न होती है. ठेकुआ, मालपुआ, खीर, खजूर, चावल का लड्डू और सूजी का हलवा आदि छठ मइया को प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है. साथ ही कई तरह के फलो को भी चढ़ाया जाता है.
छठ पर्व पर क्यों की जाती है सूर्य की आराधना छठ पूर्व में सूर्य की आराधना का बड़ा महत्व है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, छठी माता को सूर्य देवता की बहन माना जाता हैं. कहा जाता है कि छठ पर्व में सूर्य की उपासना करने से छठ माता प्रसन्न होती हैं और घर परिवार में सुख शांति तथा संपन्नता प्रदान करती हैं.
द्रौपदी ने की सूर्य देवता की उपासना पांडवों की पत्नी द्रौपदी अपने परिवार के उत्तम स्वास्थ्य और लंबी उम्र के लिए नियमित तौर पर सूर्य पूजा किया करतीं थीं. कहा जाता है कि जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने सूर्य भगवान की आराधना की और छठ का व्रत रखा. सूर्य देव के आशीर्वाद से उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी हुई .
बिहार के अलावा यूपी, छत्तीसगढ़, झारखंड, पश्चिम बंगाल और नेपाल में भी धूमधाम से छठ का त्योहार मनाया जाता है. छठ पूजा की शुरुआत नहाय खाय से होती है, जो कि पारण तक चलता है.
उम्मीद है आपको छठ महापर्व की विधि और महत्ता की आर्टिकल पसंद आएगी और अगर आपको किसी तरह की जानकारी चाहिए तो आप मुझे कमेंट में पूछ सकते है।

Hello! My name is Pooja Gupta, I am a professional hindi blogger who likes to write a lot. I like reading books surfing Internet and cooking testy foods.

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